, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता को अनचाहे गर्भ (21 से 22 सप्ताह) से छुटकारा पाने के लिए गर्भपात (अबार्शन) की अनुमति दी है। कोर्ट का यह फैसला मेडिकल बोर्ड की विस्तृत सिफारिशों पर आधारित है।
हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि यह प्रक्रिया विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में पूरी की जाए। 26 दिसंबर को मामले की सुनवाई के दौरान शासन की ओर से केवल एक पेज की साधारण मेडिकल रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, जिसमें पीड़िता के अबार्शन को संभव बताया गया था।
ओपीडी की पर्ची में रिपोर्ट पर जताई नाराजगी
इस मामले में कोर्ट में ओपीडी की पर्ची दी गई थी। इस पर जज ने नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि शासन के गाइडलाइंस के अनुसार पीड़िता का ब्लड टेस्ट, एचआईवी टेस्ट, सोनोग्राफी समेत अन्य जरूरी जांचें होनी चाहिए थीं। रिपोर्ट में इनका कोई उल्लेख नहीं था। कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड को तत्काल तलब कर गहन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
जस्टिस अग्रवाल ने लापरवाही पर फटकार लगाते हुए पूछा कि इस तरह की साधारण रिपोर्ट कैसे दी जा सकती है। मेडिकल बोर्ड ने अपनी गलती स्वीकारते हुए माफी मांगी और विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए समय मांगा।
कोर्ट ने मांगी थी मेडिकल रिपोर्ट
मामले में दुष्कर्म पीड़िता की ओर से अर्बाशन को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर गुहार लगाई थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए चीफ जस्टिस के निर्देश पर अवकाश (बीते मंगलवार) के दिन कोर्ट खुला और स्पेशल बेंच में सुनवाई हुई।
प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी थी। कोर्ट ने यह भी पूछा था कि अर्बाशन करने की स्थिति में पीड़िता के स्वास्थ्य पर बुरा असर तो नहीं पड़ेगा। अर्बाशन कराना जानलेवा साबित तो नहीं होगा।
डीएनए सुरक्षित रखने के भी निर्देश
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से एडवोकेट आशीष तिवारी ने यह भी आग्रह किया कि युवती रेप पीड़िता है। लिहाजा, अबार्शन कराने से पहले उसका डीएनए परीक्षण भी कराया जाए, ताकि रेप के आरोपित को सजा दिलाई जा सके। इस पर हाई कोर्ट ने तारबाहर थाना प्रभारी को एसपी के माध्यम से डीएनए जांच कराने की प्रक्रिया पूरी कराने कहा है।
विस्तृत रिपोर्ट के बाद कोर्ट का फैसला
गुरुवार की दोपहर मेडिकल बोर्ड ने विस्तृत रिपोर्ट पेश की, जिसमें सभी जरूरी जांचों के परिणाम शामिल थे। रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने शुक्रवार सुबह 11 बजे पीड़िता को जिला अस्पताल में उपस्थित होकर अबार्शन कराने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि पीड़िता का अबार्शन विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम की देखरेख में किया जाए।