जहां गुरु, वहां ज्ञान; जहां ज्ञान, वहां सम्मान-डॉ. संजय गुप्ता
गुरु का ज्ञान हमें जीवन की सच्ची राह दिखाता है. -डॉ. संजय गुप्ता
इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में आयोजित किया गया शिक्षक सम्मान समारोह
कोरबा / छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस : गुरु हमें जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सहायता करते हैं और हमें बड़ों के प्रति सम्मान और सही और गलत के बीच अंतर जैसे आवश्यक मूल्य सिखाते हैं। वे हमें ज्ञान, कौशल और सकारात्मक व्यवहार से सिखाते हैं जो हमें अपने जीवन में भटकने से दूर रखते हैं।
गुरु हमेशा मनुष्य के मार्गदर्शक रहे हैं। गुरु मनुष्य के जीवन से अंधकारमय अज्ञान का कार्य करते हैं। अज्ञानता दूर करके ज्ञान का प्रकाश देकर उसे मोक्ष के द्वार तक पहुंचाने का काम गुरू ही करते हैं।मानव जीवन में गुरु का सवसे अधिक महत्व है। क्योंकि गुरु विद्या के गूढ़ रहस्य को बताकर शिष्य में उसके चरित्र और भविष्य का निर्माण करता है। जीवन को सुखमय रखने के लिए मानव को किसी विषय के एक योग्य गुरु बनाने की आवश्यकता होती है। गुरु में श्रद्धा भाव के बिना शिक्षा की प्राप्ति नहीं होती है।गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, सांसारिक दुनिया में हमें प्रथम बार बोलना, चलना तथा शुरुवाती आवश्यकताओं को सिखाते हैं। अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है।
उपरोक्त सभी बातों को शत प्रतिशत महत्व देते हुए *इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में शिक्षक सम्मान समरोह का भव्य आयोजन किया गया।*
इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती संगीता मोहंती(धर्म पत्नी,जी एम गेवरा एवं प्रेसिडेंट श्रेया महिला मंडल) उपस्थित थीं,साथ ही विशिष्ट अतिथियों के रूप में श्रीमती बबीता कुमार (जी एम प्रोजेक्ट), श्रीमती रूप एकंबरम (जी एम ऑपरेशन), श्रीमती सौम्या अनिल कुमार (धर्मपत्नी डॉक्टर अनिल कुमार), श्रीमती रश्मि सिंह (जीएम ए एंड एम), श्रीमती अनुरीता कोपरिया (चीफ मैनेजर एनवायरनमेंट), श्रीपति अपर्णा सिंदूर, श्री गोपाल सिंह सेल्वात(एमबीडी ग्रुप रिजिनल हेड), श्री सुरेश चंद्र रोहरा ( एडिटर लोक सदन) उपस्थित थे।
उपरोक्त सभी महनीय अतिथियों की उपस्थिति में सर्वप्रथम सभी अतिथियों ने प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता के साथ मिलकर द्वीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम की शुरुआत की। विद्यालय की छात्राओं ने सभी उपस्थित अतिथियों का तिलक एवं पुष्प कुछ से स्वागत किया। विद्यार्थियों ने अतिथियों के स्वागत में बहुत ही सुंदर एवं कर्णप्रिय स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। तत्पश्चात विद्यालय के नृत्य प्रशिक्षक श्री हरि सारथी सर ने भगवान कृष्ण के उपदेशों को प्रस्तुत करती एक बहुत ही सुंदर भाव नृत्य की प्रस्तुति दी ।जिसे देखकर सभी अतिथि एवं विद्यार्थी तथा शिक्षक गण अभिभूत हो गए। विद्यालय की छात्राओं ने भी मनमोहक नृत्य की प्रस्तुति दी।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति के पश्चात विद्यालय में कार्यरत शिक्षक शिक्षिकाओं को अतिथियों के करकमलों के द्वारा श्रीफल, साल एवं आकर्षक उपहार से सम्मानित किया गया।
सम्मान पाकर सभी शिक्षक शिक्षिकाएं गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। *इस विशेष समारोह में विद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता के व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों को झलकाती गांधीश्वर पत्रिका का भी* विमोचन मुख्य अतिथियों के कलकमलों के द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य *अतिथि के आसंदी में विराजमान श्रीमती संगीता मोहंती* ने अपने प्रेरणादायी उद्बोधन मेंं कहा कि गुरु की कृपा व्यक्ति के हृदय का अज्ञान व अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की सम्पूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती है अतः गुरु के प्रति हमेशा श्रद्धा व समर्पण भाव रखने चाहिए। इंडस पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों की कला और यहां की शिक्षा को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। यह यहां के विद्यार्थियों के व्यवहार से झलकता है। कोयलांचल में शिक्षा एवं विज्ञान तथा कला का यह प्रमुख केंद्र है।ज्ञान होना आवश्यक है जीवन में । बिना ज्ञान का जीवन व्यर्थ है ज्ञान हमें गुरु से ही प्राप्त होता है । गुरु वह जो ज्ञान दे जिसमें हमें संसार का ,शरीर का, जीव का ,आत्मा का, परमात्मा का ज्ञान मिले जो इन पांचों का ज्ञान दे वही सच्चा गुरु होगा होगा ऐसे गुरु का जीवन में होना आवश्यक है ।आज के इस समारोह में इन गुरुओं के मध्य उपस्थित होना सच में सौभाग्य की बात है।वास्तव में शिक्षक ताउम्र सम्मान का हकदार होता है।हमें आजीवन गुरु का सम्मान करना चाहिए।
*श्री गोपाल सिंह सैलवात (एमबीडी ग्रुप रिजिनल हेड)* ने अपने प्रेरणादाई उद्बोधन में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षक छात्रों को अपनी स्वयं के बच्चों की तरह बड़े ही सावधानी प्यार और गंभीरता से शिक्षित करते हैं जिससे छात्रों में अपनत्व की भावना जागृत होती है।बच्चे समाज का भविष्य होते है। और शिक्षक उन्हें निखारने में मदद करते हैं .बिना शिक्षक के कोई भी छात्र अकाउंटेंट ,डॉक्टर, पायलट ,इंजीनियर, वकील, या किसी भी क्षेत्र में नहीं जा सकता है शिक्षक छात्र का भविष्य निर्माणकर्ता होता है।सभी बच्चों के माता-पिता बच्चों की उसकी जरूरतों को पूरा करने में सहायता करते हैं। परंतु शिक्षक उनके अंदर आत्मविश्वास बढ़ाने में और उनका भविष्य निखारने का कार्य करता है बिना गुरु ज्ञान नहीं है यह कहावत ही नहीं एक सच्चाई भी है।
*श्री सुरेश चंद्र रोहरा (एडिटर लोक सदन)* ने कहा कि शिक्षक चाहे किसी भी देश जाति या धर्म का हो जब वो किसी को शिक्षा देते है तो वो किसी भी छात्र के साथ कोई भेदभाव नहीं करते अर्थात गुरु किसी भी रुप में हो गुरु, गुरु ही होता है चाहे वह किसी भी देश का हो।हर छात्र के लिए गुरु उसके लिए ब्रह्मा, विष्णु, और महेश की तरह रहे और ऐसे गुरु को वो सर्वदा नमन करते रहे। संक्षेप मे कहे तो शिक्षक ईश्वर का दिया हुआ वह उपहार जो हमेशा से ही बिना किसी स्वार्थ और भेदभाव रहित व्यवहार से बच्चों को सही गलत और अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है समाज में शिक्षक की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है। गुरु का जीवन में होना विशेष मायने रखता है। गुरु हमारे दुर्गुणों को हटाता है। गुरु के बिना हमारा जीवन अंधकारमय होता है। अँधेरे में जैसे हम कोई चीज टटोलते हैं,नहीं मिलती है वैसे गुरु के बिना टटोलने वाली जिन्दगी बन जाती है जहाँ कुछ भी मिलने वाला नहीं है। जिस व्यक्ति के जीवन में गुरु नहीं मिला उसके जीवन में दुःख ही दुःख रहा। वह एक सहजयुक्त जीवन नहीं जी सका। गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। हमें जीवन जीने का सहीं रास्ता बताता है जिस रास्ते पर चलकर जीवन को संवारा जा सकता है। एक नई ऊँचाई को छुआ जा सकता है इसलिये गुरू हमारे लिये किसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं। माता पिता तो हर किसी को होते हैं लेकिन गुरू का होना जीवन का मार्ग बदलने की तरह होता है। गुरु इस संसार का सबसे शक्तिशाली अंग होता है। कोई चीज सीखने के लिये बिना गुरू का अध्ययन नहीं किया जा सकता है। अलग-अलग चीजें सीखने के लिये अलग-अलग गुण के गुरूओं की जरूरत होती है। सिलाई सीखने के लिये सिलाई गुरू का होना जरूरी है। ड्राईवर बनने के लिये ड्राईवर गुरू की जरूरत होती है। डॉक्टर बनने के लिये डॉक्टर गुरू के पास जाना ही पड़ेगा तभी हम इन कला पर विजय प्राप्त कर सकते हैं अन्यथा जिन्दगी भर हाथ पाँव चलाते रहिये बिना गुरू के किसी कला को नहीं सीखा जा सकता है। गुरू मिलने मात्र से नहीं होता है। गुरू के प्रति हृदय से श्रध्दा होनी चाहिये जब हृदय से श्रध्दा होगी तो आप उस कार्य की समस्त बारीकियाँ सीख सकते हैं | गुरू पूर्णरूपेण आपको पारंगत कर देगा। गुरु बहुत ही सीधा सादा होता है। गुरु भले ही लंगड़ा लूला या गरीब है लेकिन गुरु गुरु होता है। वह अपने शिष्य के प्रति कपट व्यवहार नहीं करता है। वह अपने शिष्य को पारंगत कर देना चाहता है। अपने शिष्य को बढ़ते हुये देखना चाहता है। अपने शिष्य का काँट छाँट करता है। उसके प्रत्येक कमी को निकालता है। उसे ठोंक ठोंककर कुम्हार के घड़े की तरह सुंदर बनाता है। अपने शिष्य को संपूर्ण बनाने में समस्त ज्ञान उसके सामने उड़ेल देता है। यही तो सच्चे गुरू का गुणधर्म होता है।
*विद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता ने कहा कि* गुरु विद्यार्थी को यह अंतर करना सीखाते है, ताकि वे जिन्दगी के कठिनाईयों में सही राह को चुन सके। विद्यार्थी अपने जीवन में हर कठिन परिस्थिति का सामना डट कर और निडर होकर कर सके। गुरु की असीमित शिक्षा और आशीर्वाद से विद्यार्थी जिंदगी के विषम परिस्थितियों को पार कर लेते है। गुरु की भूमिका सबके जीवन में होती है।
गुरु वह है जो ज्ञान को अंदर से जानता है अर्थात गहराई से जानता है, अर्थात जिसने ज्ञान को सिर्फ पढ़ा ही नहीं है, अनुभव ही नहीं किया है अपितु साक्षात्कार किया हुआ है। वह ज्ञान किसी भी क्षेत्र का हो सकता है।गुरू नाम में ही सम्मान और शिक्षा का भाव होता हैं। इंसान अपने जीवन में सब कुछ कर सकता है परंतु वो जो कर रहा है, वो काम सही है या नहीं ये जानने की सीख उसे गुरु से मिलती है।गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, सांसारिक दुनिया में हमें प्रथम बार बोलना, चलना तथा शुरुवाती आवश्यकताओं को सिखाते हैं। अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरि है।गुरु-शिष्य परंपरा सदियों से हमारे देश में चली आ रही है। गुरु शिष्य परम्परा के अंतर्गत गुरु अपने शिष्य को शिक्षा देता है। बाद में वही शिष्य गुरु के रुप में दूसरों को शिक्षा देता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। अब हम गुरु शब्द का अर्थ जानेंगे।
‘गु’ शब्द का अर्थ होता है अंधकार( अज्ञान) और ‘रू’ शब्द का अर्थ है प्रकाश ज्ञान, इस प्रकार अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रहा रूप प्रकाश है, वह गुरु होता है। और गुरु का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है यह सर्वविदित है।भले ही कोई ब्रह्मा, विष्णु, महेश, के समान क्यों ना हो पर वह गुरु के बिना भवसागर पार नहीं कर सकता है जब से धरती बनी है तब से ही गुरु का महत्व इस धरती पर है। वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, गीता, गुरु ग्रंथ, आदि में महान संतों द्वारा गुरु की महिमा का गुणगान किया गया है गुरु शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है। संक्षेप में कहे तो शिक्षक ईश्वर का दिया हुआ वह उपहार है। जो हमेशा से ही बिना किसी स्वार्थ और भेदभाव रहित व्यवहार से बच्चों को सही गलत और अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है। समाज में शिक्षक की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है क्योंकि उन्हीं बच्चों से समाज का निर्माण होता है। और शिक्षक उन्हें समाज में एक अच्छा इंसान बनाने की जिम्मेदारी लेता है माता-पिता के बाद शिक्षक ही होता है जो बच्चों को एक सही रूप में ढालने की नींव रखता है।