दिल्ली में रोजाना के 3,000 टन कचरे पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई। कोर्ट ने इसे विनाशकारी और चौंकाने वाली स्थिति कहा। गुरुवार को कोर्ट ने दिल्ली के मुख्य सचिव से जवाब मांगा। जस्टिस एएस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सवाल उठाए। ये सवाल ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को लेकर थे। कोर्ट ने पूछा कि दिल्ली सरकार इन नियमों का पालन क्यों नहीं कर रही है?
पीठ ने कहा, ‘मुख्य सचिव ने जिस तरह से इस मामले को देखा है, वह आश्चर्यजनक है। उन्हें इस अदालत के आदेश की कोई परवाह नहीं है। अनुपालन हलफनामा दाखिल करने की जहमत नहीं उठाते। कौन कहता है कि हम एकमत हैं।’ उसने सवाल किया, ‘अगर रोजाना 3,000 मीट्रिक टन अनुपचारित ठोस कचरे का अंतर है, तो क्या दिल्ली सरकार और नगर निगम के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे एक साथ आएं और कुछ विकास गतिविधियों पर रोक लगाएं? दिल्ली सरकार की ओर से स्पष्टीकरण आना चाहिए। तथ्य यह है कि 2016 के नियमों का कोई अनुपालन नहीं किया गया है। क्या आपने समयसीमा का अनुपालन किया है?’
शीर्ष अदालत ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि अगर विभिन्न गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए समयसीमा का अनुपालन किया गया, तो उसे ‘बिना किसी लीपापोती के’ अवगत कराया जाए। मुख्य सचिव को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के अनुपालन पर 27 जनवरी 2025 तक बेहतर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया गया। शीर्ष अदालत ने खेद के साथ यह भी कहा कि 3,000 टन अनुपचारित ठोस कचरे के उत्पादन के परिणामस्वरूप अवैध डंपिंग (कूड़ा फेंकना) हुई
उसने कहा, ‘इस अदालत को संभवतः किसी दिन शहर में कुछ प्रकार की विकास गतिविधियों को रोकने का फैसला लेना होगा, ताकि ठोस कचरे के उत्पादन को नियंत्रित किया जा सके।’ सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उसे उम्मीद थी कि दिल्ली सरकार और सभी प्राधिकरण नगर निगम के ठोस अपशिष्ट उत्पादन में अंतर को पाटने के लिए नवीन उपाय लेकर आएंगे, लेकिन कुछ नहीं किया गया।
कोर्ट ने दिल्ली सरकार से क्या कहा?
शीर्ष अदालत ने गाजीपुर और भलस्वा में दो जगहों पर फेंके जा रहे 3,800 टन अनुपचारित कचरे पर चिंता व्यक्त की और कहा कि दिल्ली सरकार को अवैध डंपिंग से निपटने और वहां आग रोकने के लिए कदम उठाने होंगे। न्यायालय ने दिल्ली सरकार को उपायों को सूचीबद्ध करते हुए 15 जनवरी 2025 तक एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
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