छत्तीसगढ़: संस्कृति, स्वाभिमान और समृद्धि का प्रतीक”-डॉ. संजय गुप्ता

छत्तीसगढ़: संस्कृति, स्वाभिमान और समृद्धि का प्रतीक”-डॉ. संजय गुप्ता

छत्तीसगढ़ की संस्कृति: लोक कला, संगीत, और परंपराओं का अनमोल खजाना-डॉ. संजय गुप्ता

आई.पी.एस. दीपका में छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के उपलक्ष्य आयोजित हुए विभिन्न रंगारंग कार्यक्रम

कोरबा / छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस : छत्तीसगढ़ भारत का 26 वां राज्य है जो कि प्राचीन काल में दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था। कुछ विद्वानों ने इसका नाम कोसल तथा महाकोसल भी बताया है, और प्राचीन ग्रंथों में छत्तीसगढ़ का नाम महाकान्तर
भी पाया गया है। 1 नवम्बर 2000 कों यह मध्य प्रदेश से विभाजित कर पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण कर लिया गया।6 वी एवं 12 वी शताब्दी में शरभपुरीय, पन्दुवंशी, नागवंशी और सोमवंशी शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। कलचुरियों ने इस क्षेत्र पर वर्ष 875 ई० से लेकर 1741 ई० तक राज्य किया। 1741 ई० से 1854 ई० में यह क्षेत्र मराठों के शासन आधीन रहा। फिर 1854 ई० में जब अंग्रेजों के आक्रमण के बाद ब्रिटिश शासन काल में राजधानी रतनगढ़ के बजाय रायपुर का महत्त्व बढ़ गया।

मध्य प्रदेश का हिस्सा निकालकर बनाया गया यह राज्य भारतीय संघ के 26वें राज्य के रूप में 1 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया। यह राज्य यहां के आदिवासियों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करता है। प्राचीनकाल में इस क्षेत्र को दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है। छठी और बारहवीं शताब्दियों के बीच सरभपूरिया, पांडुवंशी, सोमवंशी, कलचुरी और नागवंशी शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। कलचुरियों ने छत्तीसगढ़ पर सन 980 से लेकर 1791 तक राज किया। सन 1854 में अंग्रजों के आक्रमण के बाद ब्रिटिश शासनकाल में राजधानी रतनगढ़ के बजाय रायपुर का महत्व बढ़ गया। सन 1904 में संबलपुर, ओडिशा में चला गया और सरगुजा रियासत बंगाल से छत्तीसगढ़ के पास आ गई।

छत्तीसगढ़ पूर्व में दक्षिणी झारखंड और ओडिशा से, पश्चिम में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से, उत्तर प्रदेश और पश्चिम में झारखंड से और दक्षिण में आंध्र प्रदेश से घिरा है। छत्तीसगढ़ क्षेत्रफल के हिसाब से देश का नौवां बड़ा राज्य है और जनसंख्या की दृष्टि से इसका 17 वां स्थान है।

राज्य स्थापना दिवस पर दीपका स्थित इंडस पब्लिक स्कूल में रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन कर राज्योत्सव मनाया गया । इस अवसर पर माननीय श्रीमती ज्योति नरवाल ने मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई साथ ही पूरे कार्यक्रम के दौरान विद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर संजय गुप्ता,शैक्षणिक प्रभारी श्री सब्यसाची सरकार एवं सोमा सरकार उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का शुभारंभ सर्वप्रथम दीप प्रज्जवलन एवं छत्तीसगढ़ के राजकीय गीत-‘अरपा पैरी के धार’ से हुआ । विद्यालय में अध्ययनरत विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों के द्वारा छत्तीसगढ़ की माटी एवं छत्तीसगढ़ी लोक कला का बखान करने वाली सुआ, करमा, राउत नाचा, पंथी, जस गीत आदि रमणीय एवं मनमोहक गीतों पर अपनी मनभावन नृत्य से समां बाँध दिया । सभागार में उपस्थित सभी दर्शक झूमने को विवश हो गए। गौरतलब है कि विद्यालय के सभी हाउस के क्रमशः एमरल्ड, सफायर, रुबी एवं टोपाज सदन के विद्यार्थियों के मध्य शानदार छत्तीसगढ़ी नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।छत्तीसगढ़ी नृत्य के सभी गीतों पर दर्शकगण झूमने को विवश हो गए। विद्यालय के नृत्य प्रशिक्षक श्री हरिशंकर सारथी एवं श्रीमती रूमकी हलदार के द्वारा सभी हाउस के विद्यार्थियों को नृत्य का प्रशिक्षण दिया गया था।सभी हाउस के विद्यार्थियों ने अपनी नृत्य प्रतिभा से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया इस कड़े मुकाबले में सफायर हाउस के विद्यार्थियों ने जसगीत की ओजस्वी प्रस्तुति देते हुए प्रथम स्थान प्राप्त किया वहीं टोपाज हाउस के विद्यार्थियों ने सुवा, करमा एवं राउत नाचा जैसे विभिन्न नृत्य कलाओं की प्रस्तुति कर दूसरा स्थान प्राप्त किया अन्य हाउस के विद्यार्थियों का प्रदर्शन भी सराहनीय रहा । कार्यक्रम में जज की भूमिका श्री तपन सर, अभिनय सर, प्रिय पटेल एवं श्री अंशु सर ने निभाया ।
इस गरिमामयी कार्यक्रम में सभी विद्यार्थियों ने निरंतर करतल ध्वनि एवं छत्तीसगढ़ महतारी की जय की गूंज के साथ सभी प्रतिभागियों का उत्साह वर्धन किया। कार्यक्रम में उद्घोषक की भूमिका सी सी ए प्रभारी सुश्री पारुल पदवार एवं हिंदी विभागाध्यक्ष श्री हेमलाल श्रीवास ने निभाई। उद्घोषकों ने भी विभिन्न छत्तीसगढ़ी दोहे बोलकर माहौल को उत्साह से भर दिया।

स्वयं अनुशासित रहें एवं अपने कार्य के प्रति ईमानदार रहें-श्रीमती ज्योति नरवाल

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीमती ज्योति नरवाल ने कहा कि लोक कला एवं संस्कृति जो हमें विरासत में मिली है इनका संरक्षण एवं आने वाली पीढ़ियों को उसका हस्तांतरण हमारा नैतिक जिम्मेदारी है । छत्तीसगढ़ की संस्कृति और खानपान सबसे जुदा छत्तीसगढ़ की संस्कृति और खानपान सबसे जुदा है। यहाँ के प्राकृतिक एवं सरल जीवनशैली सबका मन मोह लेती है।
सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम और लगन आवश्यक है । स्वस्थ तन और मन से हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं ।

छत्तीसगढ़ के लोकनृत्यों का अपना अलग ही आनंद, यहाँ के लोग परिश्रमी एवं ईमानदर – सब्यसाची सरकार

कार्यक्रम में उपस्थित शैक्षणिक प्रभारी श्री सब्यसाची सरकार सर ने कहा कि छत्तीसगढ़ की बोली, भाषा, रहन-सहन, संस्कृति सबसे अलग व मनमोहक है। यहाँ के निवासी ईमानदार और परिश्रमी हैं। यहाँ के लोगों की अद्वितीय मान्यताएँ व विशिष्ट जीवनशैली इस राज्य को अन्य से अलग करती है। एक अंग्रेजी माध्यम विद्यालय होते हुए भी यहाँ के बच्चों की प्रतिभा छत्तीसगढ़ लोकनृत्य के प्रति समर्पण काबिले तारीफ है मैं इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।इस क्षेत्र में संचालित अन्य विद्यालयों की अपेक्षा इंडस पब्लिक स्कूल ने हमेशा से भारत की कला और संस्कृति को महत्व दिया और यहीं संस्कार विद्यार्थियों में भी डालने हेतु प्रयासरत है जो कि इस विद्यालय को अन्य विद्यालय से अलग करती है ।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति और खानपान सबसे जुदा-श्रीमती सोमा सरकार

श्रीमती सोमा सरकार (शैक्षणिक प्रभारी प्री प्राईमरी एवं प्राईमरी) ने कहा कि इंडस पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों ने हुनर की कोई कमी नहीं है इस बात को यहाँ के विद्यार्थियों ने समय-समय पर साबित कर दिखाया है आज कि इस छत्तीसगढ़ लोकनृत्य प्रस्तुति को देखकर मैं इन होनहार विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं कि ये भविष्य में अपने परिश्रम एवं लगन के बलबूते अपने लक्ष्य को प्राप्त करें ।
मंच संचालन सुश्री पारुल पदवार एवं श्री हेमलाल श्रीवास ने किया साथ कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संपन्न करने में पूरे विद्यालय परिवार का भरपूर सहयोग रहा। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापित सुश्री पारुल पदवार ने किया एवं राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया ।

हम जहाँ रहते हैं वहाँ की संस्कृति व परंपरा को करें आत्मसात -डॉ. संजय गुप्ता

इस अवसर पर विद्यालय प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता ने सभी को राज्य स्थापना दिवस की शुभकामनाएँ दी और कहा कि 1 नवंबर, 2000 यानी 22 साल पहले आज ही के दिन मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया था। पौराणिक नाम की बात की जाए तो इसका नाम कौशल राज्य (भगवान श्रीराम की ननिहाल) है। गोंड जनजाति के शासनकाल के दौरान लगभग 300 साल पहले इस राज्य का नाम छत्तीसगढ़ रखा। हम जहाँ रहते हैं वहाँ की संस्कृति व परंपरा को हमें आत्मसात करना चाहिए। कला एवं संस्कृति के विकास में ही निहित सभ्यता का विकास निहित होता है। हमें हमेशा अपनी कला,संस्कृति व परंपराओं को सहेजकर रखने का प्रयास करना चाहिए। यहां की विशिष्ट जीवन शैली एवं परंपराएं इस राज्य को अन्य से अलग पहचान दिलाती है। यह सबसे शांतिप्रिय क्षेत्र रहा है।जल जंगल एवं जमीन यहां की पहचान है।यह क्षेत्र भगवान राम का ननिहाल है। यह पवित्र भूमि है। रही बात संस्कारों एवं संस्कृतियों की तो छत्तीसगढ़ का प्रत्येक व्रत, त्यौहार,रीति रिवाज सबसे जुदा है। छत्तीसगढ़ राज्य का पूर्वी भाग उड़िया संस्कृति से प्रभावित है। राज्य के लोग पारंपरिक हैं और अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और मान्यताओं का पालन करते हुए सरल तरीके से जीने में विश्वास करते हैं। यह उनके भोजन की आदतों, त्योहारों और मेलों, वेशभूषा, आभूषणों, लोक नृत्य और संगीत में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ राज्य का क्षेत्रफल लगभग एक लाख 35 हजार 361 वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का 9वां और जनसंख्या की दृष्टि से 16 वां बड़ा राज्य है। इसके कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत इलाका वनों से परिपूर्ण है। वन क्षेत्रफल के हिसाब से छत्तीसगढ़ देश का तीसरा बड़ा राज्य है।यहाँ के प्राचीन मंदिर तथा उनके भग्नावशेष इंगित करते हैं कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा है। एक संसाधन संपन्न राज्य, यह देश के लिए बिजली और इस्पात का एक स्रोत है, जिसका उत्पादन कुल स्टील का 15% है। छत्तीसगढ़ भारत में सबसे तेजी से विकसित राज्यों में से एक है।